रूस-यूक्रेन युद्ध 2025
जानिए रूस और यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि, कारण, वैश्विक असर, आर्थिक संकट और भविष्य की संभावनाएँ
फरवरी 2022 से शुरू हुआ रूस और यूक्रेन का युद्ध आज तक दुनिया की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक घटनाओं में से एक है। इस संघर्ष ने न केवल यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दी बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा बाज़ार और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को भी गहराई से प्रभावित किया। इस युद्ध के कारण लाखों लोग शरणार्थी बने, हजारों जानें गईं और पूरी दुनिया में “नया शीत युद्ध” जैसे हालात पैदा हो गए।
युद्ध की पृष्ठभूमि
यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था, लेकिन 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद यह एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। समय के साथ यूक्रेन ने पश्चिमी देशों यानी NATO और यूरोपीय संघ (EU) से नज़दीकियां बढ़ानी शुरू कीं।
रूस, जो अपने पड़ोसी देशों को “अपने प्रभाव क्षेत्र” में मानता है, इसे अपनी सुरक्षा और प्रभुत्व के लिए खतरा समझने लगा। 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद पूर्वी यूक्रेन में रूस-समर्थक विद्रोहियों और यूक्रेनी सेना के बीच लगातार झड़पें होती रहीं।
आख़िरकार 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर “स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन” के नाम से हमला शुरू किया।
रूस के मुख्य कारण
- NATO विस्तार का डर – रूस को लगता है कि अगर यूक्रेन NATO में शामिल होता है तो पश्चिमी देशों के मिसाइल और हथियार सीधे उसकी सीमा पर आ जाएंगे।
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दावे – रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन मानते हैं कि यूक्रेन और रूस की जड़ें एक जैसी हैं और यूक्रेन को पश्चिम के प्रभाव से “बचाना” ज़रूरी है।
- क्रीमिया और डोनबास क्षेत्र – इन इलाकों में बड़ी संख्या में रूसी-भाषी लोग रहते हैं। रूस इन्हें अपने “प्राकृतिक सहयोगी” मानता है।
यूक्रेन की स्थिति
यूक्रेन का कहना है कि वह एक स्वतंत्र राष्ट्र है और अपनी विदेश नीति खुद तय करने का अधिकार रखता है। राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने रूस के हमलों का कड़ा विरोध किया और पश्चिमी देशों से लगातार सैन्य व आर्थिक मदद मांगी।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- अमेरिका और यूरोप – यूक्रेन को अरबों डॉलर की सैन्य मदद, हथियार और आर्थिक सहायता दी। साथ ही रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए।
- चीन और भारत – चीन ने रूस का प्रत्यक्ष समर्थन नहीं किया लेकिन पश्चिमी देशों की आलोचना की। भारत ने संतुलित नीति अपनाते हुए शांति की अपील की और कूटनीति पर ज़ोर दिया।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) – कई प्रस्ताव पारित हुए, लेकिन वीटो पावर के कारण ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।
https://news.un.org/hi/story/2025/01/1082011
युद्ध के आर्थिक प्रभाव
- ऊर्जा संकट – यूरोप रूस की गैस और तेल पर निर्भर था। युद्ध के बाद सप्लाई घटने से गैस की कीमतें आसमान छूने लगीं।
- अनाज संकट – यूक्रेन को “यूरोप का अन्न भंडार” कहा जाता है। युद्ध से गेहूं और मक्के की सप्लाई बाधित हुई, जिससे अफ्रीका और एशिया में खाद्य संकट गहराया।
- रूसी अर्थव्यवस्था पर प्रतिबंध – SWIFT बैंकिंग सिस्टम से रूस को बाहर किया गया, विदेशी कंपनियां रूस से निकल गईं, लेकिन रूस ने चीन और भारत जैसे देशों से व्यापार बढ़ाकर इसका कुछ हद तक सामना किया।
मानवता पर असर
- अब तक लाखों लोग यूक्रेन छोड़कर यूरोप के विभिन्न देशों में शरण ले चुके हैं।
- कई शहर खंडहर में बदल गए।
- स्कूल, अस्पताल और बुनियादी ढाँचे बुरी तरह नष्ट हुए।
तकनीकी और साइबर युद्ध
यह संघर्ष सिर्फ हथियारों तक सीमित नहीं रहा। रूस और यूक्रेन दोनों ने साइबर अटैक और ड्रोन युद्ध का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। ड्रोन हमलों और आधुनिक तकनीक ने युद्ध की तस्वीर पूरी तरह बदल दी।
भविष्य की दिशा
युद्ध अब तक किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुँचा है।
- अगर पश्चिम लगातार यूक्रेन को हथियार देता रहा तो युद्ध लंबा खिंच सकता है।
- रूस किसी भी हाल में हार मानने को तैयार नहीं है क्योंकि यह उसकी “प्रतिष्ठा” का सवाल बन चुका है।
- शांति वार्ता की कोशिशें हुईं, लेकिन अब तक सफल नहीं रहीं।
निष्कर्ष
रूस-यूक्रेन युद्ध सिर्फ दो देशों के बीच का संघर्ष नहीं है, बल्कि यह “नई विश्व व्यवस्था” की जंग है। अमेरिका और पश्चिमी देश जहाँ लोकतंत्र और संप्रभुता की बात कर रहे हैं, वहीं रूस अपने सुरक्षा हितों की रक्षा के नाम पर आक्रामक बना हुआ है।
इस युद्ध ने साबित कर दिया कि 21वीं सदी में भी बड़े देश अपनी ताक़त दिखाने के लिए युद्ध का रास्ता चुनते हैं। सवाल यह है कि इसका अंत कब और कैसे होगा? दुनिया को शांति चाहिए या शक्ति प्रदर्शन?
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