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भारतीय लोककथाओं में ‘सपनों के देवता’ – कौन था और क्यों लोग आज भी उससे डरते हैं

भारत की विशाल और रहस्यमयी लोककथाओं में अनगिनत देव-देवियां, राक्षस और अलौकिक प्राणी मिलते हैं। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा रहस्यमय चरित्र भी है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं – ‘सपनों के देवता’। यह वह अदृश्य शक्ति थी जिसके बारे में कहा जाता था कि वह रात में इंसानों के सपनों में उतर कर उनका भाग्य बदल देता था। लोग उसे पूजते भी थे और डरते भी, क्योंकि उसका आगमन शुभ भी हो सकता था और अशुभ भी।

सपनों के देवता कौन थे?

भारतीय लोककथाओं में ‘सपनों के देवता’ का उल्लेख अलग-अलग नामों से मिलता है – कहीं उन्हें स्वप्नेश्वर, कहीं निद्रनाथ और कहीं स्वप्नराज कहा गया है। पुराने समय में माना जाता था कि यह देवता ब्रह्मा के दूत हैं, जिनका काम है इंसानों के जीवन में आने वाले भविष्य की झलक सपनों के माध्यम से दिखाना।

किंवदंती के अनुसार, वे केवल रात के पहले पहर या अर्धरात्रि में ही प्रकट होते थे। अगर वे सपने में साफ और उजली रोशनी में दिखाई दें, तो यह आने वाले अच्छे समय का संकेत होता था, लेकिन अगर वे धुंधले, अंधेरे या भयावह रूप में नज़र आएं, तो यह किसी अनहोनी का संकेत माना जाता था।


कहानियों में उनका स्वरूप

लोककथाओं में ‘सपनों के देवता’ का स्वरूप रहस्यमयी और प्रतीकात्मक बताया गया है –

कहा जाता है, वे नींद के समय आपकी आत्मा को स्वप्नलोक में ले जाकर आने वाले घटनाक्रम दिखाते थे।


लोग उनसे क्यों डरते थे?

‘सपनों के देवता’ से डरने की सबसे बड़ी वजह उनकी चेतावनी देने की क्षमता थी। पुराने समय में माना जाता था कि वे बुरी घटनाओं का संकेत देकर इंसान को सावधान करते हैं, लेकिन अगर कोई इन संकेतों को नजरअंदाज कर दे तो वह घटना टालना नामुमकिन हो जाता था।

कुछ मान्यताएँ यह भी कहती हैं कि—

  1. यदि कोई व्यक्ति उनका चेहरा पूरी तरह देख ले, तो उसकी उम्र घट सकती है।

  2. अगर सपने में वे पीठ मोड़कर चले जाएं, तो यह इस बात का संकेत होता है कि भाग्य आपके साथ नहीं है।

  3. अगर वे बिना कुछ कहे गायब हो जाएं, तो यह बीमारी या संकट का संकेत है।


लोककथाओं की प्रमुख कहानी

राजस्थान के एक गाँव की लोककथा के अनुसार, एक बार एक किसान ने सपने में सफेद वस्त्रधारी एक देवता को देखा, जो उसके खेत में खड़ा था और हाथ में स्वर्ण कलश लिए पानी डाल रहा था। अगले दिन किसान ने अपने खेत में खुदाई की तो वहां से सोने के सिक्के निकले।

लेकिन कुछ वर्षों बाद उसी गाँव के एक लालची व्यापारी ने ‘सपनों के देवता’ को सपने में पकड़ने की कोशिश की, ताकि वह हमेशा अपने भविष्य को जान सके। कहते हैं, इसके बाद व्यापारी पागल हो गया और बेमतलब बातें करने लगा। गाँव वालों का मानना था कि देवता से छेड़छाड़ करने पर यह श्राप मिला।


धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

भारतीय ज्योतिष और धर्मशास्त्र में सपनों का महत्व बहुत गहरा है। गरुड़ पुराण और स्वप्न शास्त्र में साफ तौर पर लिखा है कि सपने दैवीय संदेश हो सकते हैं। ‘सपनों के देवता’ को इन संदेशों का वाहक माना जाता था।

कुछ ग्रामीण इलाकों में आज भी बच्चे सोने से पहले “स्वप्नेश्वर रक्षा” मंत्र बोलते हैं, ताकि बुरे सपने न आएं।


आज भी क्यों है डर?

आज के डिजिटल और वैज्ञानिक युग में भी, कई लोग मानते हैं कि सपने हमारे अवचेतन मन की भाषा हैं। लेकिन ग्रामीण भारत के कुछ हिस्सों में ‘सपनों के देवता’ की मान्यता अभी भी ज़िंदा है।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण

मनोविज्ञान के अनुसार, सपने दिमाग का प्रोसेसिंग सेंटर हैं जो हमारे अनुभव, भावनाएं और भय को एक दृश्य रूप में दिखाते हैं। लेकिन भारत की लोककथाओं में इसे सिर्फ मनोवैज्ञानिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव माना गया। ‘सपनों के देवता’ की मान्यता शायद इसी का प्रतीक है – एक ऐसी अदृश्य शक्ति जो हमें चेतावनी भी देती है और मार्गदर्शन भी।


निष्कर्ष

‘सपनों के देवता’ भारतीय लोककथाओं का एक अनूठा पात्र हैं – रहस्यमय, भयावह और पूजनीय। वे हमें यह याद दिलाते हैं कि हमारे सपने सिर्फ नींद में आने वाली तस्वीरें नहीं हैं, बल्कि कभी-कभी वे हमारे भाग्य की खिड़की भी होते हैं। चाहे यह सिर्फ लोककथा हो या सच, लेकिन यह मानना मुश्किल नहीं कि सपनों की भाषा को समझना आज भी एक रहस्य है

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